अस्थि-भंग (Bone Fracture)
हड्डी की टूटना या दरार आना को अस्थि -भंग (bone fracture) कहते है।1. साधारण अस्थि -भंग -
इसमें हड्डी में दरार आ सकती है किन्तु त्वचा यथावत रहती है
लक्षण -
हड्डी के टूटने के स्थान पर रोगी को दर्द होता है। अंग कार्य नहीं करता तथा रोगी को सदमा हो सकता है। उस हिस्से पर हाथ लगाने से दर्द होता है। टूटे भाग में सूजन आ जाती है। वह भाग विकृत दिखता है तथा टूटी हड्डी में किरकिराहट की आवाज आती है।
उपचार -
टूटे भाग पर खपच्ची या उपलब्ध सामग्री बांध दें। रोगी को सांत्वना दें। सदमे की स्थिति में उसका उपचार करें तथा डॉक्टर को बुलाने या रोगी को चिकित्सालय तक पहुंचाने की व्यवस्था करें।
2. मिश्रित अस्थि भंग -
इसमें हड्डी टूटने के अलावा कोई अवयव ,धमनी ,सिरा या नस भी प्रभावित रहती है ।
लक्षण -
व्यक्ति टूटे हुए अंग को साधारण रूप में प्रयोग नहीं कर पाता , हड्डी के तीखे या टूटे किनारों के बीच के भाग को अनुभव किया जा सकता है। टूटे स्थान पर दर्द होता है तथा सूजन आ जाती है। यह अंग छोटा या टेढ़ा हो जाता है जिससे रोगी सामान्य अवस्था में कार्य नहीं कर पाता। अंग निर्जीव व विकृत सा लगता टूटी हड्डी के किनारों से किट किट की आवाज आती है।
उपचार -
-अस्थि भंग को सीधा करने का प्रयास न करें ।
-मिश्रित अस्थि भंग की स्थिति में घाव को रोगाणुरोधक पट्टी से ढक दें, तथा घाव पर मरहम पट्टी कर दें ।
-आकर्षक पट्टी बांधने में समय नष्ट न करें ।
-पोले स्थानों को भरने के लिये गद्दियों का प्रयोग करें ।
-आस - पास के जोड़ों को गतिहीन कर दें ।
-सख्त खपच्ची का प्रयोग न करें ।
-अस्थि भंग स्थान से ऊपर पहले पट्टी बांधे ।
-खपच्ची लगाने से पूर्व गद्दी लगायें तथा खपच्ची उचित आकार की हो ।
-यदि खुला घाव हो तो पहले खून का बहना बन्द करें ।
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जबड़े की हड्डी का टूटना (Jaw Fracture)
- सदमे का उपचार करें ।- रोगी को चिकित्सालय पहुंचाने की व्यवस्था करें ।
विषम टूट (Complicated Fracture)
इसमें हड्डी टूटने के साथ -साथ ‘ मांस पेशियां ,फेफडे ,रीढ़ की हड्डी ,जिगर ,तिल्ली या मस्तिष्क को भी चोट पहुँचती है ।
हड्डी टूटने की पहचानः -
- उस स्थान के अंग का शक्तिहीन हो जाना
-सुजन आ जाना ,वहां अत्याधिक दर्द होना
- उस स्थान पर विकृति आ जाना ।
- हड्डी का अपने स्थान से अस्तव्यस्त हो जाना ,उस अंग का लटक जाना
- हिलाने डुलाने पर कर - कर की आवाज़ आना
उपचार -
रोगी को हिलाने डुलाने न दें , तुरंत अस्पताल भिजवायें
भुजा की हड्डी का टूटना (Arm Fracture)
- यदि कुहुनी मोड़ी जा सके तो उसे धीरे - धीरे मोड़कर सीने पर लायें ।- हाथ व सीने के मध्य गद्दियों का प्रयोग करें ।
- हंसली व कलाई बंध झोली (Collar & Cuff Sling) का प्रयोग करें।
- भुजा को हिलाने -डुलाने से बचाने के लिये तथा उसे छाती पर स्थिर रखने के लिये एक आड़ी पट्टी या दो चौड़ी पट्टियों , एक कन्धे के निकट दूसरी कुहनी के नीचे से बांध दें।
- यदि कुहनी मोड़ना सम्भव न हो तो हाथ को जांघ से तीन जगह चौड़ी पट्टी से बांध दें।
हंसली की हड्डी का टूटना (Fracture of Collar Bone)
- हंसली की हड्डी टूटने पर आहत व्यक्ति दूसरे हाथ कुहनी को सहारा देता है तथा सिरे को उसी ओर झुकाता।
उपचार -
जिस ओर की हंसली की हड्डी टूटी हो उस हाथ को सहारा दें दोनों कन्धों पर संकरी पट्टी इस प्रकार बांधे के गाँठ आगे हो
- कॉरव में गद्दी रखें
- दोनों पट्टियों को स्थिर रखने के लिये एक तीसरी पट्टी गोलाई में छाती पर बांध दें।
- हाथ को सीने पर मिलाकर एक तिकोनी झोली (St.John's Sling) से इस प्रकार बांधे कि गाँठ कन्धे में रहें
- यदि दोनों ओर से हंसली की हड्डी टूटी हो तो दोनों हाथों को सीने पर क्रास पोजीशन में रखकर चौड़ी पट्टी बांध दें
पैर की हड्डी का टूटना (Fractureof Feet)
पैर की हड्डी टूटने पर पैर को धीरे - धीरे सीधा करें। गद्दी युक्त खपच्ची लगाकर अंग्रेजी के आठ के आकार में पैर व टखने पर पट्टी बाधे। जांघ व घुटनों पर चौड़ी पट्टी बांधे , दो और पट्टियाँ एक टूटे स्थान के ऊपर दूसरी कुछ नीचे बांध दें। इस प्रकार कुल पाँच पट्टियाँ बांधनी होगी। यदि जांघ की हड्डी टूटी हो तो खपच्ची हाथ की काख से पैर तक लगानी होगी। पहली पट्टी काख के निकट ,दूसरी कमर पर ,तीसरी टखनों पर , चौथी जांघ पर टूटे स्थान के ऊपर ,पाँचवीं टूटे स्थान के नीचे , छठी दोनों पैरों पर तथा सातवीं दोनों घुटनों पर बांध दें।
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कमर की हड्डी टूटने का उपचार
कूल्हे या कमर की हड्डी प्रायः सीधी चोट के कारण टूटती है। जब भारी मलबा गिर जाय अथवा ऊँचाई से पैर को हुए दोनों पैरों के बल जोर से गिरने से जब कूल्हा टूट जाय तो भीतरी अंग विशेषकर मूत्राशय तथा मूत्र मार्ग भी चोटिल हो सकते है
लक्षण-
हिलने या खांसने से कमर के आस -पास की पीड़ा बढ़ जाती है। निचले अंगों में चोट न लगने पर भी आहत व्यक्ति खड़ा नहीं हो सकता भीतरी अंगों में रक्तश्राव हो सकता है। मलमूत्र त्याग की बार -बार इच्छा होती है।
उपचार -
घायल को ऐसी स्थिति में सीधे लिटाइये जिसमें उसे अधिक आराम मिले । पीठ के बल लेट कर घुटने सीधे रखें , घुटनों को थोड़ा मोड़ना हो तो उन्हें तह कर कम्बल से सहारा देना चाहिए । हो सके तो वह मलमूत्र रोके रखें । यदि चिकित्सालय दूर हो तो कूल्हे के आस - पास दो चौड़ी पट्टी बाँध दें , घुटनों और टखनों के बीच पट्टियाँ लगा दें । घुटनों और टखनों पर अंग्रेजी के आठ के आकार की पट्टी बाँध दें । रोगी को स्ट्रेचर पर औषधालय ले जायें ।
झोली (Sling)
हाथ ,हथेली या भुजा को सहारा देने ,उसे हिलने -डुलने से रोकने के लिये झोली का प्रयोग किया जाता है।
झोली का प्रयोग निम्नलिखित तीन प्रकार से होता है :-
1. बाजू की झोली (Arm Sling) -
बाजू के अग्रभाग और हाथ को सहारा देने के लिए इस झोली का प्रयोग किया जाता है।
बनाने की विधि :-
बाजू -झोली लगाने हेतु रोगी के सामने खड़े हो जाइये ,कन्धे के ठीक वाले हिस्से के ऊपर फैली हुई तिकोनी पट्टी का एक सिरा रखिये तथा पट्टी के शीर्ष (Point) वाले सिरे को चोट वाले हिस्से की ओर रखिये ,अब आहत भुजा को पट्टी के ऊपर समकोण में मोड़ कर आहत कन्धे पर दोनों सिरे लेकर डॉक्टरी गाँठ लगा दें, शीर्ष को मोड़ कर सेफ्टी पिन लगा दें
2.कॉलर और कफ स्लिंग (Collar & Cuff Sling)
कलाई को सहारा देने के लिये इस झोली का प्रयोग होता है।
विधि:-
इसे लगाने के लिये रोगी की कुहनी को मोड़कर स्वस्थ कन्धे के पास अंगुलियों रखें। कलाई पर संकरी पट्टी से खूंटा फॉस लगायें तथा आहत भुजा की ओर के कन्धे पर हंसली की हड्डी के निकट के गड्ढ़े में डॉक्टरी गाँठ लगा दें।
3. (Triangular or St. John's Sling)
इस झोली का प्रयोग हाथ को ऊपर उठाये रखने तथा हंसली (Collar bone) की हड्डी के टूटने पर किया जाता है। रोगी की बाजू के अग्रभाग को उसकी छाती पर इस तरह रखें कि उसकी अंगुली की नोक कन्धे की तरफ रहे तथा हथेली का मध्यभाग उरोस्थि पर रहे। कांख (बगल) पर एक गद्दी (Pad) रखकर बाजू के अग्रभाग पर खुली पट्टी रखिये , जिसका एक सिरा हाथ पर और नौक , कुहनी से कुछ दूर रहे। दूसरे सिरे को कुहनी के नीचे से घुमाकर पीछे की ओर कन्ध पर लाकर हंसली के ऊपर गड्ढे में दूसरे कन्धे पर डॉक्टरी गाँठ लगा दें।एक सकरी पट्टी आहत भुजा के कुछ ऊपर रखकर कमर पर विपरीत दिशा में बांध दें। जिससे टूटी हंसली की हड्डी सही स्थिति में रहें ।