![मोच आना का प्राथमिक उपचार मोच आना का प्राथमिक उपचार](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiO8pnyYnq_wk9pBn4MLTUaZGkLdfBqb-3HzmKprMxZePO7aeRa0LUUf3H7DK8muHaBdxk1D3QqUROqV582Jmh1Q4Stb7smeMPaUVimrcF01C6j1J2ZOIPHGecNodJzHDjou27Rct0HyVdn/w400-h225-rw/20210628_210311.jpg)
मोच (Sprains) आना
एड़ी में मोच या मरोड़ आ जाना एक आम समस्या है। यह तब होता है जब पैर गलत तरीके से मुड़ जाता है। पैर मुड़ने से एड़ी के लिगामेंट्स में खिंचाव आ जाता है या लिगामेंट्स फट जाते हैं। लिगामेंट्स रेशेदार ऊतकों की पट्टी होती है जो जॉइंट्स पर हड्डियों को आपस में जोड़े रखती है।
ये लिगामेंट्स शरीर में लगभग उन सभी जगह होते हैं जहाँ दो हड्डियाँ का जोड़ होता है। अतः मोच सिर्फ एड़ी में ही नहीं बल्कि कंधे , घुटने या गर्दन में भी आ सकती है।
मोच आने पर क्या करें:मोच आने पर प्राथमिक उपचार के तौर पर RICE नामक उपचार करना चाहिए। इसका अर्थ है –
R - Rest
I - Ice
C – Compression
E – Elevation
इन्हे इस प्रकार समझा जा सकता है –
Rest – आराम
मोच आये हुए अंग पर ज्यादा भार नहीं आना चाहिए यानि पैर में मोच जाये फिर भी खेलना या चलना जारी रखें तो यह गलत होगा। जहाँ तक संभव हो उस अंग को आराम मिलना चाहिये। उस अंग को थोड़ा बहुत हिला सकते हैं। बिल्कुल भी नहीं हिलाने से परेशानी बढ़ सकती है। थोड़ा बहुत काम किया जा सकता है।
Ice – बर्फ
चोट लगने पर तुरंत उस स्थान पर बर्फ की सिकाई करनी चाहिए। यह सिकाई 15 मिनट तक हर तीन-चार घंटे के अंतराल में की जा सकती है। इसे दो दिन तक करें। इससे दर्द और सूजन में आराम आता है। बर्फ को किसी मोटे कपड़े में लपेटकर सिकाई करें। बर्फ सीधे त्वचा पर न लगाएं। किसी-किसी को बर्फ से परेशानी हो सकती है , ऐसे में बर्फ ना लगायें। दो दिन के बाद बर्फ की बजाय गर्म सिकाई करना ठीक रहता है।
Compression – दबाव का सहारा
इसका अर्थ है की क्रेप बैंडेज जैसी व्यवस्था करके हल्के दबाव के साथ मोच के स्थान को बांध देना ठीक रहता है। इससे चोट लगे स्थान को सहारा मिलता है मोच अधिक बढ़ती नहीं है। लेकिन यह इतना ज्यादा टाइट नहीं होना चाहिए कि खून का दौरा ही रुक जाये।
Elevation – ऊँचा रखना
इसका मतलब है की चोट लगे हुए स्थान को कुछ ऊपर उठा देना चाहिए अर्थात हृदय के स्तर से कुछ ऊपर। ऐसा करने से चोट लगे स्थान के आसपास इकठ्ठा हुआ द्रव कम हो जाता है और सूजन कम हो जाती है। इससे दर्द में भी आराम मिलता है।
यदि दर्द या सूजन कम ना हो और तकलीफ बढ़ जाये तो अतिरिक्त इलाज की जरुरत हो सकती है। ऐसे में तुरंत चिकित्सक से संपर्क करके इलाज करवाना चाहिए। MRI के माध्यम से पता लगाया जा सकता है की लिगामेंट्स पर कितना अधिक असर हुआ है। कभी-कभी सर्जरी की भी आवश्यकता भी पड़ जाती है।