History Of Ashanti Tribe | अशांति जाति का इतिहास | Ashanti Tribe | अशांति जनजाति | बेडन पॉवेल और सरदार प्रेमपेह

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अशांति जनजाति से जुड़ी जानकारी

वर्ष 1888 में "प्रेमपेह" अशांति नामक वन-जाति का राजा बना। कुछ काल के लिए शांति बनी रही, परन्तु जब वर्ष 1894 में कुछ गड़बड़ी शूरु हुई तो, "गोल्ड कोस्ट" की सरकार ने सुझाया की उसे (प्रेमपेह) उससे पूर्व राजाओं द्वारा वर्ष 1874 में की गई प्रतिज्ञा के अनुसार रहना चाहिए और इसके अतिरिक्त उसे ब्रिटिश छत्रछाया में आना चाहिए। प्रेमपेह ने इस प्रस्ताव को नकार दिया और यह सोचा कि प्राकृतिक आपदाएं ही ब्रिटिश के मनसूबों को (ब्रिटिश गोल्डकोस्ट उपनिवेश में अशांति की राजधानी' कुमासी के विरुद्ध) पूरा न करने के लिए पर्याप्त हैं। प्राकृतिक बचाव हेतु वहां कठोर लकड़ी से भरे जंगल, रेशम, कपास, तंग रास्ते और अन्ततः ' आह ' नदी प्रकृति द्वारा बचाने के अनेक साधन थे। प्रेमपेह ' पर सधि लागू करने के उद्देश्य से एक अभियान भेजा गया। बी.पी. को इस अभियान को संगठित करने तथा दो स्थानीय सैनिक टुकड़ियों को पथिकृत (पाईनियरिंग) और स्काउटिंग में प्रशिक्षित करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया। उन्होंने अपना कार्य अति साहस, बुद्धिमत्ता, विभिन्न कलाओं तथा साहसिक संचार योग्यता के सहारे सम्पन्न किया।

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               अशांति पश्चिमी अफ्रीका का एक संघ था जिसका , 18 वीं शताब्दी से ही , कुमासी सब से आवश्यक भाग था। वे पड़ोसी ब्रिटिश उपनिवेश के लिए कष्टदायक थे और ब्रिटिशाधीन स्थानीय लोगों पर जुल्म ढ़ाते थे। वे गुलामों के लिए आक्रमण करते और उनके व्यापार में अड़चनें पैदा करते। बहुत से स्थानीय लोगों को बलि और यातना देने के लिए पकड़ा जाता।

    बी.पी. द्वारा अशांति में ही पथिकृत (पायनियरिंग) कार्य को क्रियान्वित करने का अवसर मिला। वहां वे काओ ब्वाय की टोपी पहनते और स्थानीय लोग उन्हें ' कन्तन्कै ' (वह बड़ा हैट वाला) के नाम से बुलाते। सेना में पथिकृत (पायनियरिंग) वे लोग होते हैं जो सेना से पहले ही पहुंचकर , जंगल या कहीं भी , उन लोगों के लिए रास्ता बनाते हैं जो उनके पीछे आते हैं।

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       अपने पहनावे के साथ अनेक प्रयोगों के आधार पर बी.पी. को भावी स्काउट की वर्दी के बारे में विचार आए। उन्होंने यहां स्काउट लाठी का प्रयोग करना सीखा और उनके लाभों से अवगत हुए  स्काउट लाठी का प्रयोग अभियन्ताओं (इन्जिनियरों) द्वारा फीट और इंचों के निशान लगाने के काम आता था। यह लाठी नदी को पार करने, गहराई मापने तथा दलदल का अनुभव करने तथा अन्य माप आदि में काम आती है। उन्होंने स्थानीय लोगों से अफ्रीकी कहावत ' साफ्टली- साफ्टली कैची मन्की ( बन्दर ) बोलना भी सीखा । इसका अर्थ है , जल्दी न करो और किसी चीज को प्राप्त करने की जल्दबाजी न करें , वरन् इसे आराम से प्राप्त करने का प्रयास करें। यहां उन्होंने बांया हाथ मिलाना भी सीखा। अशांति जन - जाति का मुख्यिा ' प्रेमपेह ' को पकड़ लिया गया। वह आगे बढ़ा और अपना बांया हाथ आगे निकाला परन्तु बी.पी. ने अपना दांया हाथ आगे बढ़ाया। मुखिया प्रेमपेह ने जवाब दिया कि उसके देश के वीर पुरुष बांया हाथ मिलाते हैं। (इस घारणा के फलस्वरूप स्काउटिंग में बांया हाथ मिलाने का प्रचलन दोस्ती के चिन्ह के रूप में शुरू किया गया) बांया हाथ मिलाने के बारे में यही सामान्य धारणा है । लेडी बी.पी. ने इस सम्बन्ध में कहा है (अनुलग्नक ) " समूचे संसार में स्काउट नेताओं द्वारा बांया हाथ मिलाने की रीति स्वीकार कर ली गई है। इसमें किसी अन्य सच्चे रूप में हाथ मिलाने की भांति गर्मजोशी है। बांया हाथ इसलिए मिलाया जाता है क्योंकि यह दोस्ती का हाथ है , हाथ जो दिल के सबसे निकट है। सर्वत्र स्काउट्स गर्मजोशी से बांया हाथ मिलाते हैं। इसके मिलाने से अपनेपन की भावना का उदय होता है और यह अनुभव होता है कि वह संसार के लाखों स्काउट्स में से एक है जो एक जैसी सेवा के लिए कटिबद्ध हैं।

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    अशांति में बी.पी. ने अनायास रूप में एक मनोवैज्ञानिक धारणा का पता लगाया कि जो पुरुष पथिकृत (पायनियरिंग) कार्य से जुड़े हैं वे सुस्त हैं और उनके साथ ठीक व्यवहार नहीं किया जाता। कार्य को सुचारू रूप गतिशील करने के लिए सहानुभूति पूर्ण व्यवहार की अति आवश्यकता होती है। एक बात जिसको स्थानीय लोग पसन्द करते थे वह थी कि श्वेत लोग उन्हें कुछ अद्भुत नाम दें। अतः वे उन सबको कुछ-कुछ नाम देने लगे 'तार बकिट, ग्लयू , सोण, बाउंडर ब्रास, पैन, पीसोण, व्हाइट नाट , यूसर बैग इत्यादि। यदि वे कोई गलती करते तो बी.पी. उन्हें दण्ड के रूप में नए नाम से बुलाना बन्द कर देते। यह चतुराई वाला कदम था और स्थानीय लोग बी.पी. को स्नेह की दृष्टि से देखते और उनका समुचित आदर करते क्योंकि वे न्यायप्रिय और उचित थे। थोड़ी सी प्रशंसा उनसे अधिक कार्य के लिए पर्याप्त थी। फलतः वे लोग बी.पी. के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते और बी.पी. कठिन कार्य उनसे जल्दी ही सम्पन्न करवा लेते।

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