मानचित्र का सामान्य परिचय, परिभाषा, उनके प्रकार व उपयोगिता | General Introduction, Definition, Kinds & The use of Maps.


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MAPPING (मानचित्र)

मानचित्र का सामान्य परिचय, परिभाषा, उनके प्रकार व उपयोगिता

मानचित्र बनाने की कला अति प्राचीन है। आदिम मानव युग में भी मानचित्र बनाने की कला विकसित हो चुकी थी।


मानचित्र एक मूक भाषा है। जिसके माध्यम से अभिव्यक्ति की जाती थी, जबकि आदि मानव बोली जाने वाली भाषा का ज्ञान नहीं रखता था।


प्राचीन युग में वृक्षों की टहनियों, पशुओं की खाल या मिट्टी की टिकली पर मानचित्र बनाये जाते थे। उदाहरणार्थ "हारवर्ड विश्व विद्यालय के सेमिटिक अजायबघर में पकाई हुई मिट्टी की टिकली पर बना एक मानचित्र प्राचीन कला का प्रमाण है। यह ईसा पूर्व 2500 वर्ष पुराना है।



परिभाषा (Definition) :-


● पृथ्वी या उसके किसी भाग को किसी समतल सतह पर सानुपातिक चित्रण को मानचित्र (Map) कहते हैं।


किसी चपटी सतह पर पृथ्वी या उसके किसी भाग की सतह का सानुपातिक चित्रण मानचित्र (Map) कहलाता है।


In common parlance a map may be defined as a small scale conventional representation of the earth (as a part thereof) as seen from above.


• A map is a picture of a Three Dimensional curved surface of the earth on a Two Dimensional flat surface.


• A map is said to be conventional representation of theearth's surface pattern.


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पृथ्वी मण्डलाकार है सतह वक्राकार है। मानचित्र (Map) समतल सतह के होते हैं। इनमें लम्बाई व चौड़ाई तो दर्शायी जा सकती है परन्तु वक्रता नही दर्शायी जा सकती है। अतः पृथ्वी या उसके किसी भाग को समतल सतह पर प्रदर्शित करने के लिये प्रक्षेपों की (Projections) सहायता ली जाती है।



मानचित्रों का वर्गीकरण (Classification of Maps ):-


मानचित्र के निर्माण व अध्ययन में निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।


• मापक (Scale) सर्वेक्षणोपरान्त पृथ्वी या उसके भाग को आँकड़ों की सहायता से सानुपातिक रूप में प्रकट किया जाता है। जो वास्तविक दूरी से कम ही होती है।


• पृथ्वी पर किसी स्थान की स्थिति जानने के लिये अक्षांस व देशान्तर रेखा जाल की सहायता ली जाती हैं।


• धरातल की साम्रगी (प्राकृतिक व सांस्कृतिक) को मानचित्र पर दर्शाने हेतु अभिसामयिक चिन्हों (Conventional Signs) का उपयोग किया जाता है।


• नामांकन


• मानचित्र का परिचय, सीमाएँ व अन्य तत्व



वर्गीकरण :-


मानचित्रों का वर्गीकरण पैमाने (Scale) के आधार पर दर्शायी जाने वाली सामग्री (प्राकृतिक व सांस्कृतिक) एवं उद्देश्य के आधार पर दो वर्गों में किया जाता है।


(अ) बड़े पैमाने (Large Scale) वाले मानचित्र जिनका पैमाना (Scale) बड़ा होता है जो धरातल की स्थिति व आकृतियों को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।

इस वर्ग के भी दो भाग होते हैं :-


(i) अचल सम्पत्ती के मानचित्र (Cadastrial Maps) ये राजस्व उपयोग (Revenue Purposes ) के लिये बनाये जाते हैं।

(ii) भूतल व्याख्यक मानचित्र (Topographical Maps) इनका महत्व विद्यार्थी, यात्रियों, पर्वतारोहियों, पर्यटकों शासकों, योजना निर्माताओं, व सैनिकों के लिये अधिक है।


(ब) छोटे पैमाने (Small Scale) वाले मानचित्र । इनमें पृथ्वी के अधिकतम भाग को दर्शाया जाता है।


उद्देश्य के आधार पर मानचित्र:-


(i) प्राकृतिक मानचित्र

(ii) भूतात्विक मानचित्र

(iii) समुद्री मानचित्र

(iv) जल-वायु मानचित्र

(v.) सांस्कृतिक मानचित्र

(vi) जातीय मानचित्र

(vii) राजनैतिक मानचित्र

(viii) यातायात मानचित्र

(ix) सैनिक मानचित्र

(x) भूमि उपयोग के मानचित्र

(xi) पैदावार वितरण मानचित्र

(xii) औद्योगिक मानचित्र


इनके अतिरिक्त आवश्यक्तानुसार विभिन्न प्रकार के मानचित्र बनाये जाते हैं। भूगोल के अध्ययन में पुस्तकों की अपेक्षा मानचित्रों का अधिक महत्व है। इसीलिये कहा गया हैं:



"Maps are the TOOLS of a geographer and without maps the geographer is like an warrior without arms."


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आधुनिक युग में प्रत्येक व प्रत्येक व्यक्ति के लिये मानचित्रों का महत्व अधिक है। इसी प्रकार शासकों के लिये, सीमा, परिक्षेत्र, सामरिक स्थल, योजना, व्यवसाय. कृषि, सिंचाई, अन्वेषण, इतिहास, विज्ञान, यातायात आदि विधाओं में मानचित्रों का महत्व है। स्काउटिंग-गाइडिंग में किसी अजनवी को मार्ग-दर्शन करने के लिये मानचित्र ज्ञान की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार हाइकिंग, केम्पिंग, रैली, जम्बूरी आदि हेतु नक्से की जानकारी (नक्सा पढ़ना व नक्सा बनाना) होना आवश्यक हैं।