योगासन (Yoga)
योग विद्या भारत की देन है। महर्षि पतंजलि इसके जनक माने जाते है। प्राचीन काल में आसन ऋषि तपस्वियों का व्यायाम माना जाता था किन्तु आज यह विश्वव्यापी व्यायाम बन गया है। योगासन से शरीर स्वस्थ रहता है, पाचन शक्ति बढ़ती है, शरीर में स्फूर्ति, लचीलापन व कान्ति रहती है और अनेक रोगों का उपचार होता हैं। इनसे आत्म-नियंत्रण और मानसिक एकाग्रता में वृद्धि होती हैं
योगासन के लिये आवश्यक नियमः
- योगासन का सबसे उत्तम समय प्रातःकाल या सायं काल का है।
- योगासन शौच व स्नान से निवृत होकर खाली पेट करना चाहिए।
- योगासन में श्वांस गति और मन पर नियंत्रण आवश्यक है।
- श्वांस नाक से ही ली जानी चाहिए तथा शरीर की क्षमता के अनुकूल ही आसन करना चाहिए ।
- किसी एक आसन को दो मिनट से 5 मिनट तक ही करना चाहिए।
- आसन करते समय शरीर पर कम से कम वस्त्र हों तथा दरी या मोटे कपड़े या कम्बल पर करना चाहिए।
- आसन का स्थान समतल तथा हवादार होना चाहिए।
- बीमारी या थकावट की स्थिति में आसन न करें।
- दो आसनों के मध्य 5-10 मिनट का अन्तर रखें।
- अन्त में शवासन अवश्य करें।
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सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार आठ आसनों का मिला जुला रूप है। सूर्य शक्ति का पुंज है। इसकी किरणों से रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। सूर्य के नामों का स्मरण करते हुए प्रातः काल की बेला में सूर्य नमस्कार सामंजस्य से करना चाहिए ।
प्रथम स्थिति:- सूर्य की ओर मुंह कर सावधान की स्थिति में खड़े हो जाइये । दोनों हाथ जोड़कर अंगूठा सीने से मिला लें, सीना उभरा, पेट दबा, एडी पंजे साथ मिलाकर कर सीधे खड़े होकर सांस बाहर छोड़े, तत्पश्चात् सांस भरते हुए हाथ ऊपर उठाकर पीछे तक जाने दें।
दूसरी स्थिति:- सांस बाहर निकालते हुए धीरे-धीरे शरीर के कमर से ऊपरी भाग को आगे इतना झुका दें कि हथेली जमीन का स्पर्श करें तथा सिर घुटनों से जा लगे, किन्तु पैर सीधे रहें ।
तीसरी स्थितिः- दोनों हाथों को जमीन पर जमाकर दाहिना पैर पीछे तान दें तथा बायें पैर को मोड़कर दोनों हाथों के मध्य लेकर पंजे भूमि पर टिकाकर धीरे-धीरे सांस अन्दर लें। गर्दन ऊपर की ओर लेकर पीछे को लटका दें।
चौथी स्थिति :- साँस सामान्य रखते हुए बायाँ पैर पीछे ले जायें। शरीर को सीधा रखते हुए 300 का कोण बनायें तथा दोनों भुजायें सीधी रखें।
पाँचवीं स्थिति :- सांस धीरे-धीरे छोड़ते हुए पंजे, घुटने, सीना तथा ठोड़ी को भूमि स्पर्श करने दें।
छठी स्थिति:- धीरे-धीरे सांस लेते हुए पंजों और हाथों पर शरीर का वजन डालते हुए सीना उठाकर गर्दन पीछे को मोड़ते हुए आसमान की ओर देखें अर्थात् भुजंगासन की स्थिति बनायें ।
सातवीं स्थिति :- सांस धीरे-धीरे छोड़ते हुए नितम्बों को उपर उठायें। हथेली व पैर पूरे जमीन पर टिके हों। गर्दन अन्दर की ओर ले जायें।
आठवीं स्थिति :- तीसरी स्थिति में आ जायें किन्तु बायां पैर पीछे तानें और दाहिना पैर दोनों भुजाओं के बीच लायें।
नवीं स्थिति :- दूसरी स्थिति में आ जायें।
दसवीं स्थिति :- प्रथम अवस्था में आकर सावधान खड़े हों।
कोई छः आसन करना आता हो
● पद्मासन
● नौकासन
● पश्चिमोत्तान आसन
● मत्स्यासन
● उत्कटासन
● भुजंगासन
● त्रिकोणासन
● चक्रासन
● धनुरासन
● बज्रासन
● मयूरासन
● ताड़ासन
● वकासन
● सर्वागासन
● गोमुखासन
● शवासन
● चक्रासन
● शीर्षासन
● उष्ट्रासन
● हलासन
पद्मासन (Padmasana)
ध्यान और प्राणायम के लिये इस आसन का प्रयोग होता आया है। इसे समतल भूमि पर बैठकर करें, दोनों पैर घुटने से मोड़ कर जांघों के ऊपर रखे हों। तलुवे ऊपर की ओर दोनों हाथ सीधे घुटनों के ऊपर तथा कमर सीधी रहे। सीना उठा हुआ आंखें बंद कर ध्यान किया जाना है। शुरू में 5 मिनट तक भौंहों के मध्य (भृकुटी) पर ध्यान केन्द्रित करें जिसे धीरे-धीरे बढ़ाया जाना चाहिए। इसी प्रकार इस मुद्रा में प्राणायम भी किया जाता है। इस आसन से इन्द्रिय जनित विकार शान्त हो जाते हैं, पाचन शक्ति बढ़ जाती है, रक्त संचार सुचारू रहता है तथा स्नायु तन्त्र व मेरुदण्ड को मजबूती मिलती है।
ताड़ासन (Tadasana)
यह आसन खड़े होकर किया जाता है ताड़ वृक्ष की तरह पंजों पर खड़े होकर दोनों हाथ हुए शरीर को ऊपर की ओर खींचा के ऊपर तानते जाता है, बच्चों की लम्बाई बढ़ाने में यह आसन सहायक होता है।
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पश्चिमोत्तान आसन (Pashchimottar asaan)
इस आसन को नित्य करने से मनुष्य में पुरुषत्व की अभिवृद्धि होती है। इसे बैठकर दोनों पैर सीधे आगे की ओर तानकर किया जाता है। पैरों को सटाकर रखें, घुटने व पंजे मिले रहें, हाथ ऊपर तानकर घड़ को ऊपर को खींचते हुए धीरे-धीरे आगे झुकें। सिर को घुटनों पर लाकर दोनों हाथों से पैर के अंगूठे पकड़ लें। कुछ देर तक इस मुद्रा में रहें। फिर धीरे-धीरे हाथ व धड़ पूर्व अवस्था में लायें। प्रारम्भ में इस आसन को करने में कष्ट होगा किन्तु अभ्यास करते रहने से यह सुख का आधार बन जायेगा क्योंकि इस आसन से पेट जनित, वीर्य जनित रोग दूर होते हैं। कब्ज दूर होता है, तिल्ली, जिगर आदि को बल मिलता है, कमर दर्द, गठिया आदि विकार दूर हो जाते हैं।
भुजंगासन (Bhujangasan)
इस आसन की स्थिति सर्प के आकार की रहती है। पट लेटकर शरीर समतल भूमि पर फैलाया जाता है। किन्तु हाथ सीने के नीचे, हथेली भूमि पर रहे। धीरे-धीरे कमर से ऊपर का शरीर उठाकर हाथ सीधे कर गर्दन पीछे को मोड़ दें। कुछ देर रुकने के बाद पुनः पूर्व अवस्था में आ जायें। इस आसन से मेरुदण्ड, फेफड़े व हृदय को बल मिलता है।
सर्वांगासन (Sarvangasana)
इस आसन को समतल भूमि पर चित्त लेटकर किया जाता है। दोनों हाथों की स्थिति कमर के नीचे रहती है। धीरे-धीरे शरीर को सीधा ऊपर तान दें। कमर पर हाथों का सहारा दें। शरीर का सारा बोझ कन्धों पर होगा। इस आसन सम्पूर्ण शरीर को लाभ होता है। रक्त शुद्धि, पाचन शक्ति में वृद्धि, स्मरण शक्ति व नेत्र ज्योति बढ़ती है। हृदय व फेफड़ों को बल मिलता है।
शवासन (Shavasana)
रक्त संचार व साँस प्रक्रिया को सुचारु करने के लिये प्रत्येक आसन के बाद अथवा आसनों के बाद करना अति आवश्यक है। चित्त लेटकर शरीर को ढीला छोड़ कर विचार शून्य होकर इस आसान को समतल भूमि पर करें।