CAMPING | शिविर जीवन | OVER NIGHT CAMP | रात्रि खेल | NIGHT GAME | कैंपिंग से जुड़ी जानकारी | Night Hike

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 शिविर जीवन (Camping)

● रात्रि-शिविर (Over Night Camp)

रात्रि शिविर का प्रमुख उद्देश्य है वार्षिक शिविर के लिये पूर्वाभ्यास अथवा किसी कौशल का प्रशिक्षण या जाँच शिविर अथवा खुले में रात्रि बिताने का आनन्द।

इस शिविर में पूरा दल भाग लेता है। यह स्थल विद्यालय या मुख्यालय से अधिक दूर न हो ताकि प्रशिक्षण का अधिक लाभ उठाया जा सके। शिविर स्थल शान्त , एकान्त और आकर्षक हो। शिविर की स्वीकृति दल सभा से ली गई हो शिविर स्थल का चयन, आने - जाने की व्यवस्था, भोजन , कार्यक्रम , आगन्तुक आदि की व्यवस्थायें पहले से नियोजित हों। शिविर हेतु प्रस्थान का समय प्रातः नाश्ता करने के बाद अथवा अपराहन लगभग 2 बजे उत्तम रहता है। सभी स्काउट गाइड किसी निर्धारित स्थल पर उपस्थिति हों जहां उनकी उपस्थिति ली जाये तथा सामग्री की जाँच कर ली जाये। मार्ग में ' खोज चिन्ह ' तथा खेल , चुटकले , गीत - सिंहनाद आदि कराये जायें। शिविर स्थल पर पहुंचकर स्वच्छता , आवास व्यवस्था , भोजन , पानी , प्रकाश आदि की व्यवस्था कर ली जाये। भोजन सामूहिक रूप से करना चाहिए। मान सभा शिविर ज्वाल कार्यक्रम करके समय पर सो जाना चाहिए। अगले दिन शौचादि से निवृत होकर कुछ नाश्ता कर वापसी होवे । वापसी पर उपस्थिति तथा सामग्री की जाँच अवश्य कर ली जाये ।

मानचित्र बनाने की विधि :- Click Here

● एक दिन की हाइक में प्रतिभागिता

प्रकृति का आनन्द लेने या किसी स्थान का अध्ययन करने के लिये हाइक की जाती है। हाइक से अपनी शक्ति तथा कौशल को परखने का सुअवसर प्राप्त होता है। किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु हाइक की जानी चाहिए। हाइकर को भोजन पकाना, तम्बू तानना ,मानचित्र व कम्पास का ज्ञान होना चाहिए। पीठ पर आवश्यक सामग्री से भरा रकसैक साथ में स्काउट, कुल्हाड़ी, चाकू ,कम्पास ,मानचित्र ,लाठी आदि अवश्य हो। हाइक में एक महत्वपूर्ण वस्तु है जूता नया न हों तथा फीतेदार हो । हन्टर शू अधिक सुविधाजनक रहता है।

हाइक का सबसे अच्छा समय है - प्रातःकाल या अपराहन 2-3 बजे। प्रातःकाल नाश्ता कर हाइक पर जाया जा सकता है , प्रतिदिन 8 से 10 किलोमीटर चलना आनन्ददायक रहता है

सफल हाइकर को मानचित्र पढ़ना , बनाना तथा रेखाचित्र बनाना (Sketches) आना चाहिए। प्रत्येक हाइकर को हाइक का विवरण अपनी डायरी में अवश्य लिखना चाहिए।

अनुमान लगाना की जानकारी :- Click Here

हाइक में जाने के लिये अभिभावकों की लिखित स्वीकृति ले लेनी चाहिए । समय पर उपस्थिति तथा गन्तव्य स्थल पर जाना चाहिए तथा समय पर घर लौटना भी आवश्यक है अन्यथा अभिभावक चिन्तित रहेंगे। हाइक में जाने से पूर्व सामग्री का निरीक्षण तथा उपस्थिति अनिवार्य है। हाइक में प्रोजेक्ट निर्धारित हो तथा मनोरंजन व विविधता का ध्यान रखा जाये ताकि थकावट न हो। प्रत्येक स्काउट/गाइड को हाइक का एक काल्पनिक मानचित्र तथा उसकी रिपोर्ट लिखनी चाहिए।

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● रात्रि खेल में भाग लेना

रात्रि में खेले जाने वाले खेल रात्रि - खेल कहलाते हैं। उदाहरण के लिये टार्च का खेल ले लें , सभी खिलाड़ी एक अंधकारपूर्ण स्थल पर खड़े हो जाते हैं। दो या तीन नायक अपने पास टार्च ले लेते हैं जिसे वे अलग - अलग स्थान पर चमकाते हैं। अन्य खिलाड़ी उन्हें पकड़ने का प्रयत्न करते हैं । पकड़े जाने पर नायक उस खिलाड़ी को एक टोकन दे देता है। एक निश्चित समय सीमा के बाद सभी इकट्ठे होते हैं जिस टोली के सदस्यों के पास अधिक टोकन मिलते हैं वह टोली विजयी कहलाती है । अन्य खेलों के लिये Nature Game and Games Galore किताब देखें ।

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● बिना बर्तन भोजन बनाना

भोजन पकाने ( Cooking ) के बारे में द्वितीय सोपान में विस्तार पूर्वक बताया जा चुका है । यहाँ पर बिना बर्तनों के भोजन बनाये की विधियों का वर्णन किया जा रहा है।

मनुष्य जीवन में कभी ऐसी भी स्थिति आ जाय कि उसके पास मात्र कुछ राशन जैसे - आटा , चावल , दाल , आलू , प्याज , बैंगन , नमक हो किंतु कोई पकाने का बर्तन न हो तो क्या वह बिना कुछ खाये सो जाऐगा ऐसी स्थिति फौज में अथवा पर्वतरोहण में आ जाती है। प्राचीन काल में तो शिकारी अपने शिकार की खोज में जंगलों में भटक जाते थे और उन्हें किसी सुरक्षित स्थान जैसे ऊँची चट्टान या पेड़ पर रात गुजरानी पड़ती थी। ऐसी स्थिति में शरीर में ऊर्जा बनाये रखने के लिये भोजन आवश्यक हो जाता है।

स्काउट / गाइड बिना बर्तनों के भी अपना खाना तैयार कर लेते हैं और पर्याप्त भोजन पा लेते हैं। बिना बर्तन के वे देश - काल -परिस्थितियों का अवलोकन कर  3 संसाधन जुटा लेते हैं अथवा किसी पत्थर को साफ कर उस पर आटा गूंथ लेते हैं । अब कोई ऐसी लकड़ी जैसे बांस या फलदार अमीवा जिससे कोई नुकसान न हो , ऐसी लकड़ी को छीलकर , धोकर उसमें आटे की लम्बी लड़ बनाकर उस लकड़ी पर लपेट कर जली हुई आग पर पका लेते हैं । उसे घुले पत्तल में रखते जाते हैं । आलू को कोयलों में पकाकर उसका बाहरी छिलका हटाकर नमक डाल कर सब्जी के रूप में खा सकते हैं।

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राजस्थान की बाटी और चूर्मा प्रसिद्ध भोज्य पदार्थ है। आटे की बाटी बनाकर गोबर के सूखे कण्डों की आग में मसलकर उसमें नमक , मिर्च व प्याज की बारीक कतरन डालकर बाटी बनाई जा सकती है। उसकी राख हटाकर अथवा जलने पर बाहरी परत हटाकर उपलब्ध हो तो उस पर तवे की भांति रोटियाँ भी बनाई जा सकती हैं।

चावल व दाल पकाना हो तो किसी साफ कपड़े की पोटली तैयार करें , चावल या दाल को धो लें । पोटली में रखकर पानी में कुछ देर तक भीगने दें । अब पास में एक गड्ढा खोदें । उसमें नीचे और चारों ओर पत्ते रख दे । पत्ते ऊपर से भी बिछा दें , उसके ऊपर मिट्टी चढ़ाकर ढक दें और ऊपर से खूब आग जलायें । कुछ समय बाद गर्मी से दाल या चावल पक जायेंगे । तो वहाँ पर एक या डेढ़ घंटे लग सकते हैं । आग हटाकर और मिट्टी - पत्ते हटाकर पोटली बाहर निकालें । उसमें दोनें या पत्तल में रखकर खा सकते हैं इसी प्रकार आप खिचड़ी या तहरी भी बना सकते हैं । दोनों में पानी भी गर्म किया जा सकता है ?

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