Scouting For Girls (गर्ल गाइड आन्दोलन)
एग्नेस बेडन पावेल की सहायता से बी.पी. ने लड़कियों के लिए पुस्तिका लिखी और उसे 1912 में प्रकाशित किया। इस पुस्तिका में बी.पी. ने लड़कियों के प्रशिक्षण, जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य एवं चरित्र निर्माण, मातृत्व का विकास, घर का रख रखाव और घर में काम आने वाली अन्य बातों के बारे में ब्यौरा दिया ।
बाद में लेडी बी.पी. ने 1912 में अपने विवाहोपरांत, नई शाखा को चलाने में अति महत्वपूर्ण योगदान दिया। सफलता का काफी श्रेय उन्हें भी जाता है। उन्होंने ससक्स की गाइड कमिश्नर का पद निभाया, चीफ कमिश्नर और बाद में जून 26, 1971 के दिन देहावसान तक संसार की चीफ गाइड बनी रहीं। बी.पी. की मान्यता थी कि गाइड शाखा लड़कों की स्काउटिंग से अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि कन्याएं आने वाली पीढ़ी की माताएं हैं।
बी.पी. द्वारा गाइड नाम कैसे सुझाया गयाः
क्योंकि बी.पी. ने गर्ल स्काउट्स को सफेद ब्लाउज, नीला स्कर्ट और काली जुराबें पहने देखा तो उनका मस्तिष्क उनके लिए उपयुक्त नाम सोचने लगा । अन्ततः उनके दिमाग में पुरानी घटनाएं स्फुटित हुईं जब उनकी सैनिक टुकड़ी को उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रदेश में. तैनात किया गया (1880)। वहां उन्होंने नियुक्त प्रसिद्ध रेजिमैंट के सिपाहियों को देखा। यद्यपि वे लोग विभिन्न जातियों से सम्बन्धित थे तो भी उनकी कुछ चीजें मिलती थीं। वे सब बड़े मजबूत और शारीरिक रूप से चुस्त थे। उनके कर्तव्यों में अति कठिन अभियान शामिल थे। जब किसी स्वैच्छिक व्यक्ति को खतरनाक कार्य के लिए कहा जाता तो आवश्यकता से अधिक लोग तैयार हो जाते। सभी अच्छे पुरुषों की भांति वे अपने कार्य के बारे में थोड़ा बोलते। जब वे ड्यूटी पूरी कर लेते तो वे मानसिक और शारीरिक रूप से अपना प्रशिक्षण करते। वह रेजिमैंट सदा उत्तर-पश्चिमी सीमा में तैनात रहती और उन्हें गाइड्स कहा जाता क्योंकि उनका कर्तव्य था कि वे आगे बढ़ें और दूसरों का पथ प्रदर्शन करें। हर दशा में वे अपना भोजन स्वयं पकाते थे। हर प्रकार के संकेतन (सिगनलिंग) में वे निपुण थे। उन्हें फर्स्ट एड और नर्सिंग का पूर्ण ज्ञान था। इन सब के अतिरिक्त उन्हें ईश्वर में पूर्ण आस्था और विश्वास था ।