आग | Fire | आग के प्रकार एवं उपयोग | Type Of Fire & Use | Dwitiya Sopan Logbook

 

आग (FIRE)

 भारतीय संस्कृति में अग्नि को देवता की संज्ञा दी गई है। क्षितिज, जल,पावक,गगन, समीर इन पांच तत्वों में पावक  का महत्वपूर्ण स्थान है। यह मानव का परम मित्र है किंतु जब कभी इनके  साथ असावधानी की जाती है तो यह विनाशलीला भी घर बैठती हैं।
            अग्नि एक पवित्र तत्व है। प्रातः सायं पूजा-पाठ में दीपक जलाना, धूप अगरबत्ती जलाना, हवन आदि कार्य भारतीय जनमानस की दैनिक प्रक्रिया है। अग्नि को साक्षी मानकर पति-पत्नी इनके सम्मुख सात फेरे लगा कर जीवन पर्यन्त वैवाहिक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हमारा भोजन अग्नि में  ही पकाया जाता है। गरीब घरों में आग तापकर उष्मा प्राप्त की जाती है, साधु- सन्यासी अग्नि के सहारे ही जीते हैं।
        स्काउट /गाइड भी आग जलाने के प्राकृतिक स्रोतों का प्रयोग करते हैं।वे सूर्य ताप को लेंस से केंद्रित कर अग्नि  प्रज्वलित कर लेते है।आग जलाने के पूर्व आसपास की सफाई करना आवश्यक है। घास-फूस व सूखे पत्ते हटाकर ऐसे स्थान पर आग जलानी चाहिए जो हवा के रुख के  को भी बदला खत्म जो हवा  विपरीत  हो। आग जलाते समय शीघ्र आग  पकड़ने वाले पदार्थ  तैयार रखने चाहिए। यदि भूमि नम हो तो कुछ लकड़ीयां आयताकार या वर्गाकार या त्रिभुजाकार रखकर बीच में पिरामिड की शक्ल में पतली व शीघ्र जलने वाली लकड़ियां रख दे। शीघ्र आग पकड़ने वाली पतली लकडियों, पत्तियों या घास पर माचिस की तिल्ली से आग सुलगा दें। स्काउट/गाइड एक या दो तिल्लियों से आग जला लेने में  सक्षम होते हैं। आग जलाते समय माचिस की तिल्ली मजबूती से रगड़ते   हुए जल जाने पर कुछ देर तक अपनी दोनों हाथों के मध्य में रखना चाहिए। अच्छी तरह तिल्ली के जल जाने पर उसे घास-फूस पर लगाना चाहिए। हवा की विपरीत दिशा में बैठकर माचीस जलायें। यदि हवा तेज हो तो तुरंत कागज या कपड़े पर तिल्ली से आगे जलायें।
आग जलाने की विधि के अनुसार आग को विविध नामों से पुकारा जाता है- प्राचीन काल में भारत में आग को कॉउन्सिल फायर, फ्रेंडली फायर, सिग्नल फायर तथा कुकिंग फायर इन चार नामों से पुकारा जाता था

आग के प्रकार एवं उपयोग
आजकल आग जलाने की निम्नलिखित विधियां प्रचलित हैं
1. फाउंडेशन फायर (Foundation Fire)-
तीन मोटी लकड़ियों से त्रिभुजाकार आकृति  बनाकर मध्य में शीघ्र जलने वाली पतली लकड़ियां व घास रख कर उनके बाहर से लकड़ियां इस प्रकार खड़ी कर दी जाती है कि शीर्ष पर शंकु बन जायें। इस तरह की आग एक बिंदु पर तीव्रतर होती है।

2. स्टार फायर (Star Fire)-
लकड़ी के मोटे लट्ठों को तीन दिशाओं से एक बिंदु पर मिलाकर जला दिए जाने से स्टार फायर बन जाती है। इस प्रकार की आग शिविर में रातभर जलती रहेंगी और रोशनी भी देगी।

3. रिफ्लेक्टर फायर ( Riflector Fire )-
लगभग 4 फिट के फासले पर 6 इंच मोटी दो, 4 फिट लम्बी लकड़ियां भूमि में गाड़ दें। भूमि से ऊपर इन दो लकड़ियों के सहारे एक के ऊपर एक रख कर सामने आयताकार मोटी लकड़ियाँ रखकर मध्य में आग जला दें। टेंट को गर्म रखने तथा गिरी लकड़ियों को सुखाने में रिफ्लेक्टर फायर उपयोगी होती है।

4. ट्रेंच फायर ( Trench Fire )-
भूमि में एक नाली खोद कर लट्ठों को जला दिया जाता है। इन लट्ठों के ऊपर बर्तन रखकर भोजन पकाया जा सकता है। इस प्रकार की आग से कोयले भी तैयार किए जाते हैं। कोयले बनाने के लिए नाली को अधिक चौड़ाकर उसमें कई लट्ठे जला दिए जाते हैं। उन्हें अधजला कर बुझा दिया जाता है।

5. जिप्सी फायर (Gypsy Fire)-
 चक्र की तिल्लियों  की तरह लकड़ियां रखकर जला दी जाती है जिनके केंद्र में बर्तन रखकर चाय अथवा भोजन पकाया जाता है।

6. हन्टर फायर (Hunter Fire )-
दो मोटे लठ्ठों  के बीच पतली लकड़ियां रखकर आग जला दी जाती है। उनके ऊपर बर्तन रखकर भोजन पका लिया जाता है।

7. अल्टर फायर - 
भूमि पर पूर्व- पश्चिम दिशा में दो मोटी लकड़ियाँ एक दूसरे से कुछ फासले पर रखें। इनके ऊपर उत्तर दक्षिण दिशा में एक दूसरे से सटाकर दूसरी तह लगायें। आवश्यकतानुसार तीसरी- चौथी तह लगाते चलें। सबसे नीचे मोटी लकड़ियों की तह हो। उत्तरोतर पतली लकड़ियों की तह लगाई जाये। उपरी तह पर टी.पी.फायर की एक या दो ढेरी बनायें। शिविराग्नि के विशेष अवसर पर यह फायर आकर्षक लगती है।

8. टीपी या विगवार्म फायर ( Tepee or Wigwarm Fire )-
चारों ओर पत्थरों का गोलाकार बाड़ा बनाकर मध्य में लकड़ियां खड़ी कर जला दी जाती है। इस प्रकार की आग में पानी या चाय शीघ्र उवाली जा सकती है।

9. क्रिसक्रॉस फायर ( Crisscross Fire )-
दो मोटी लकड़ियों को कुछ फासले पर रखकर उनके ऊपर सटाकर लकड़ियों की पर्त लगा दें। विपरीत दिशा में आवश्यकतानुसार पर्तें लगाते चलें।

10. पिरामिड फायर (पिरामिड फायर )-
मोटी लकड़ियाँ नीचे रखकर आयत बना लें। ऊपर को आयताकार में लकड़ियां रखते चलें। हवन के लिए इस प्रकार की आग उपयुक्त रहती है।

 उपरोक्त के अतिरिक्त देशी चूल्हा,भट्टी , धुआं रहित चूल्हा, मघन चूल्हा ,चिमनी आदि भी आग जलाने की हमारे विधियां प्रचलित हैं।
         आधुनिक युग में आग जलाने के लिए माचिस या लाइटर का प्रयोग होता है किंतु प्राचीनकाल में जब उक्त वस्तुओं का विस्तार नहीं हुआ था तो लोग आग जलाने के लिए अनेक प्राकृतिक साधनों का प्रयोग किया करते थे।
          भारत में एक लोहे के टुकड़े (अंगेला) से  एक सख्त सफेद पत्थर (डांसी) पर चोट(रगड़) मारकर चिंगारीयां पैदा की जाती थी जिन्हें त्वरित ज्वलनशील तृणों (बुकिला) पर  बिठाकर तथा उसके बाहर कपड़ा लपेटकर आग जला ली जाती थी।
         ऑस्ट्रेलिया में एक लकड़ी की छड़ को नरम लकड़ी के छेद में घुमाकर आग उत्पन्न की जाती है।
         बोर्नियों के  लोग एक गेली को चमकदार बेंत से चीरकर आगे उत्पन कर लेते है। रेड इंडियन धनुष और तकले से आग उत्पन्न कर लेते हैं।